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इस विधि से करें करेले की खेती मात्र 3 महीने में 30 हज़ार रुपए की कमाई

 

करेले की मचान विधि का लाभ:

  1. उच्च पैदावार: चुन्नु मुर्मू ने मचान विधि से करेले की खेती कर जमीन पर खेती की तुलना में 4 गुना अधिक फलन प्राप्त किया है। इससे उनकी तीन महीने में 30,000 रुपए से अधिक आमदनी हुई है।
  2. फसल की गुणवत्ता में सुधार: इस विधि से करेले की बेलें ऊंची उठती हैं, जिससे उन्हें अधिक प्रकाश और हवा मिलती है। इससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होता है और कीटों के हमले का खतरा कम होता है।
  3. कम रखरखाव: मचान विधि से फसल की देखभाल करना आसान हो जाता है। बेलों को उन्नत स्थिति में रखने से कीटनाशक उपयोग की आवश्यकता भी कम होती है।

मचान विधि से करेले की खेती करने की विधि:

  1. संरचना तैयार करना:
    • सामग्री: बांस की कट्ठियां, रस्सी, और अन्य सहायक सामग्री।
    • निर्माण: खेत में बांस से एक ऊंचा ढांचा बनाएं। यह ढांचा इस प्रकार से बनाएँ कि करेले की बेलें आसानी से चढ़ सकें और नीचे से फल निकल सकें।
  2. पौधों की रोपाई:
    • समय: उचित मौसम में पौधे लगाएँ।
    • विधि: करेले की बेलों को मचान पर चढ़ने के लिए प्रशिक्षित करें। बेलों को सही तरीके से बांधें ताकि वे उपर की ओर बढ़ सकें और अच्छी तरह से फैल सकें।
  3. सिंचाई और देखभाल:
    • सिंचाई: नियमित सिंचाई सुनिश्चित करें, विशेष रूप से गर्मी के मौसम में।
    • नियंत्रण: कीट और बीमारियों की निगरानी रखें। मचान विधि से कीटनाशक उपयोग कम होगा, लेकिन यदि आवश्यकता हो तो उचित उपाय करें।
  4. फसल की कटाई:
    • समय: जब करेले पूरी तरह से विकसित हो जाएं, उन्हें समय पर काटें।
  5. बिक्री:
    • मंडी में बिक्री: उत्पादन के बाद, करेले को स्थानीय मंडियों में बेचें। उचित मूल्य और अच्छे नेटवर्क से लाभ प्राप्त करें।

चुन्नु मुर्मू के अनुभव से सीख:

  • अधुनिक तकनीक: मचान विधि जैसे आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाना महत्वपूर्ण है। इससे न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि कृषि कार्य भी आसान हो जाता है।
  • अन्य किसानों को सलाह: चुन्नु मुर्मू ने इस विधि को अपनाकर अन्य किसानों को भी सलाह दी है कि वे भी इस तकनीक का प्रयोग करें और इसके लाभ का अनुभव करें।

भविष्य की योजनाएं:

  • चुन्नु मुर्मू के अनुसार, अगले 1 महीने में और फलन की उम्मीद है जिससे उनकी कुल कमाई 40,000 रुपए या उससे अधिक हो सकती है। वे भविष्य में भी इसी प्रकार के प्रयोग जारी रखने का इरादा रखते हैं।

इस विधि से किसानों को कम भूमि में बंपर पैदावार प्राप्त करने और आर्थिक लाभ में सुधार करने का एक प्रभावी तरीका मिल सकता है।

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